शादी क्या है? शादी का अर्थ क्या है? क्या शादी करना जरूरी है?

श्री अक्षय भट्ट
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P - 376
DATE - 25 JAN 24


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शादी क्या है?



शा(caps)दी पर चर्चा करने के लिए कोई विवादस्पद बात तो नहीं करूंगा पर इतना जरूर कहूंगा कि यह एक सभ्य समाज का विचार है। जिसे समाज ने लागु किया है, अपने लोगो पर जो उनके साथ रहते है, जिसे कि समाज स्वच्छ और सभ्य प्रतीत हो। शादी अथवा एक स्त्री पुरूष का योग है, जिससे जुड़कर एक अच्छे सभ्य परिवार का निर्माण होता है, और यही सभ्य परिवार मिलकर समाज का निर्माण करता है। 

इतिहास में देखा जाए, तो धार्मिक आधार पर शादी नाम कि शब्द कि शुरूआत तब से मानी जाती है, जब अथवर्वेद कि रचना कि गई, हिंदु रिती रिवाजों के हिसाब से सबसे पहले शादी कि प्रथा है, हिंदु समाज से उत्पन्न हुई, वरना शादी नाम का कोई चिज पहले था ही नहीं, बाद में समाज के द्वारा इसे अपना लिया गया क्युंकि इसमें एकल पति पत्नि जैसे स्वरूप दिखाई पड़े तथा एक सभ्य परिवार और समाज का निर्माण हुआ। 

ऐसा नहीं है, कि पहले कोई महिला पुरूष के साथ नहीं रहती थी, सब कुछ अब के जैसा ही था, लेकिन इसमें थोड़ी सी तबदिली यह हुई है, कि अब शादी के तौर पर एक प्रमाण प्रदान कर दिया जाता है, कि यह उस महिला का पति है, या पत्नी है। पहले जो पुरूष अथवा महिला को यह लगता था कि यह मेरे लिए सही साबित होगा, वह उसके साथ रह लेता या लेती थी, और उनको जब लगे कि इसके साथ अब रहना संभव नहीं है, तो वह अलग हो जाते थे। और आगे उनका साथी कोई और होता था।

बाद में भ्रष्टाचार और बहुत सी कुरितियों को दुर करने के लिए बुद्धजीवियों द्वारा यह नियम बना दिया गया कि आपस में शादी करनी है, और वह पुरूष अथवा महिला एक योग कि तरह रहेगें, एवं जीवन व्यतीत करेंगे।

शादी का अर्थ क्या है?




हमारे शब्दकोश में शादी का अर्थ है, खुशी, हर्ष और आनंद। सबसे अंत में शादी का अर्थ विवाह बताया गया है, कि साफ मतलब यह बनता है, कि शादी का अर्थ है, खुशी। भारत में हिंदु धर्मा अनुसार विवाह एक प्रकार का पुजा है, एक मानविक संस्कार है, जिसे समाज कि सबसे छोटी इकाई परिवार का निर्माण होता है। विवाह दो शब्दों से मिलकर बना है, एक है, वि यह एक प्रकार का उपसर्ग है, जिसका शाब्दिक अर्थ है, कि विशिष्टता। दुसरा शब्द वाह है, जिसका अर्थ होता है, वहन करना। अर्थात् विवाह एक प्रकार कि व्यवस्था है, जिसमें पति पत्नी एक दुसरे का विशेष प्रकार से निर्वहन करते है। वह कदापि एक दुसरे को ढोते नहीं है। हिंदु धर्म शास्त्रों में विवाह तक युवकों को ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए कहा गया है। इसका मुलभुत उद्धेश्य विवाह के सुखद भविष्य का निर्वहन है। क्युंकि अगर पुरूष का दिल शादी से पहले किसी और के साथ लगा हो और महिला का दिल शादी पहले किसी और के साथ लगा हो, तो वह एक दुसरे के समाजिक शादी के बाद भी अपना सर्वस्व समर्पण नहीं कर पाएंगे, और दोनो अपने जीवन साथी से असंतुष्ट रहेंगे। पर आजकल चल रहे आधुनिक प्रेम प्रसंग के द्वारा यह एक मजा बन गया है, आज कोई और कल कोई और तो परसो कोई और। ऐसे माहौल में दिल कहीं और रहता है, और शादी कहीं और हो जाती है, यहीं कारण है, कि तलाक जैसे चिजे भारत जैसे संस्कारी देश में बढ़ सी गई है। 


क्या शादी जरूरी है?



इस सवाल का जवाब मेरा व्यक्तिगत राय है, कृपया मेरे विचारों के आधार पर अपनी राय ना बदले, कोई भी फैसला सोच समझ कर ही करें। मेरे विचार शादी जैसी सहमती को लेकर कुछ और ही है, मैं मानता हूं कि यह सब एक भ्रम है। शादी एक माया कि जाल है, जिसमें अगर आप पांव रख देते है, तो उसमें फसते चले जाएंगे, आप अपने उद्देश्य से भटक जाएंगे, इस संसार में मेरे हिसाब से कोई अपना नहीं है, सब स्वार्थ वश आपके साथ है, जिस दिन उसका मतलब निकल गया है, अर्थात् आपसे बेहत्तर मिल गया, सामने वाला आपको बगल करके आगे निकल जाएगा। 


इस भ्रम को छोड़कर हमें अपने आस्तित्व को लेकर सोचना चाहिए, आखिरकर हमारा अभ्युदय क्युं हुआ है, इस सत्य को सिद्ध करना चाहिए। लड़की के संबध में मेरे व्यक्तिगत विचार है, कि यह किसी कि नहीं होती है, इन्हें समझना वाला आज तक इस पृथ्वी पर पैदा नहीं हुआ है, इनके वादे पानी कि तरह बह जाते है, इनके इरादे मौसम कि तरह बदल जाते है, इनका साथ मृत्यु के समान छुट जाने जैसा होता है, यदि आप किसी स्त्री को अपना पत्नी बनाते है, या बनाने कि कामना रखते है, तो आपका विचार सिर्फ उसी महिला पर टिका रहेगा, लेकिन उनके साथ ऐसा नहीं होता है, वह शादी के दिन तक आपसे बेहतर कि तलाश करती रहती है, शादी होने के बाद यह तलाश थोड़ी मंद हो जाती है, लेकिन ध्यान रहें खत्म नहीं होती है। किसी लड़की पर बहुत भरोसा करके उसे अपना सर्वस्व मत बना लिजिए, क्युंकि जो आपके जीवन कि छोटी से छोटी चिजों को अपने से करती है, आपके खाने, पीने, रहने, सोने हर चिज का निर्णय खुद लेती है, भाईसाहब आपको भी महाराजा वाली भावनाएं उमड़ जाएगी, और आप उसका हिरो खुद को समझने लगोगे, लेकिन जैसे ही आपसे बेहतर उसे मिलेगा, सब कुछ छोड़ देगी और अब उसके जीवन कि छोटी से छोटी या बड़ी से बड़ी निर्णय खुद लेने लगेगी और जब आप यह देखोगे, तो यह मेहसुस होगा, कि आप तो कभी हिरों थें ही सब कुछ तो कोई और ही था, और यदि आप कुछ ज्यादा भावुक है, तो आपके जान पर बन सकती है, मतलब मरने कि दुआ करने लगोगे। 



इसलिए मेरे हिसाब से यह सब ढकोसला है, इससे बचिए, और जीवन के यर्थाथ पर विचार किजिए। इन सब के विपरितार्थ यह भी है, कि यदि कोई ऐसी लड़की मिल जाए, जो 12TH FAIL हिंदी फिचर फिल्म में दिखाया गया है, तो आप उसे कभी अपने से दुर ना जाने दें, इसका भरसक प्रयास करें कि वह आपकी जीवनसाथी बनें, आपके साथ आपकी कामयाबी हो या असफलता सब में समाज दुनिया से परे बनकर आपका साथ दे। ऐसी साथी को पाने के लिए अपना सर्वस्व तक दांव पर लगा देना चाहिए, ताकि भविष्य में कोई कश्क ना रहें, कि ऐसा कर दिया होता तो आज वो मेरे साथ होती। 


मेरी विचारधारा सभी लड़कियों पर लागु नहीं होती है, कुछ 12TH FAIL हिंदी फिचर फिल्म कि श्रद्धा के जैसी भी है, जो पुरा जीवन आपको समर्पण कर देना चाहती है, आपकी खुशी में ही उसकी खुशी होती है, आपके दुख में ही उसका दुख। उसके लिए यह सब मायने नहीं रहता है, कि आप क्या करते है, समाज में आपका पद क्या है, उसे सिर्फ आप चाहिए होता है, लेकिन ऐसी लड़की लाखों में एक होती है। सच्चाई तो यह है, ऐसी लड़की सबको मिलना तो बिल्कुल मुश्किल है, तो क्या आपको शादी नहीं करना चाहिए, तो मेरा जवाब है, बिल्कुल करिए, लेकिन यात्री अपने समान कि रक्षा स्वंय करें। इसका जिम्मेदार आप ही है। 



रामायण में एक पात्र है, शुपनखा, जो एक ऐसी महिला है, जो अपने भाई को जो पहले से ही विवाहित है, किसी गैर स्त्री को अपना बनाने के लिए ललकार रही है, और दुसरी तरफ सीता है, जिसे  राम के मर्यादा के लिए पग पग पर उनके साथ चल रही है। एक मां रूपी महिला कैकयी है, जो राम को वन में 14 वर्ष का वनवास करवा देती है, और एक सेवरी है, जिसे इस बात कि परवाह है, कि कहीं मेरे राम को खट्ठे बेर ना मिल जाए, इस चख चख कर बेर खिला रही है। मतलब महिला जाति वहीं किरदार अनोखा है, बड़ी आश्चर्यजनक है।


शादी कोई अनिर्वायता नहीं है, यह समाज के निर्माण कि इकाई है। स्त्री और पुरूष दोनो को अपने लिए सही योग्य साथी के चुनाव का अधिकार है, और उन्हें यह काफी सावधानी के साथ निभाना चाहिए। शादी किसी दबाव में नहीं हो सकती है, यह आपके स्वेच्छा से ही संभव है। इसलिए मेरा कहना है, कि शादी जरूरी नहीं है, शादी ही जीवन नहीं है, बल्कि यह सिर्फ जीवन का एक भाग है।  



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