रामकृष्ण मठ(काशीपुर उद्यानबाटी) के बारें मे विस्तृत जानकारी। पहुंचने का रास्ता। मठ खुलने का नियमित समय। नजदीकी रेलवे स्टेशन अथवा मेट्रों स्टेशन।

श्री अक्षय भट्ट
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P - 375
DATE - 21 JAN 24


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रामकृष्ण मठ(उद्यानबाटी), काशीपुर कोलकता




ब(caps)ड़ी ही सुकुन कि अनुभुति हो रही है, जब मैं आज इस पावन मठ के बारे में लिखने के लिए तैयार हूं। वास्तविकता कुछ ऐसी ही है, जो आपको मजबुर कर दे, कि आप श्री रामकृष्ण के अनुयायी बन जाओ। उनको मानने वाले कि कमी नहीं है, लेकिन मैने जब इंटरनेट पर उनके बारें पढ़ने कि कोशिश कि तो मुझे किसी भी वेबसाइट से कुछ खास प्राप्त नहीं हुआ। फिर मैनें बहुत ही उत्सुकता के साथ यहां जाने कि इच्छा व्यक्त किया, और मै गया भी। जाने के बाद मैंने जो - जो चिजे श्री रामकृष्ण जी के बारें में जाना और उसे अनुभव किया है, उसे आज आपके सामने रखना चाह रहा हूं, वहां हुई अनुभुतियों को ऐसे शब्दों में कहना नामुमकिन है, लेकिन मैं उसकी छोटी छवि जरूर आप लोगो के सामने रखने का प्रयास कर रहा हूं। मैं यहां 01 जनवरी को गया था जिस दिन यहां बहुत बड़ा उत्सव मनाया जाता है, जिसे कल्पतरू महोत्सव के नाम से भी जाना जाता है। तो चलिए शुरू करते है।




रामकृष्ण मठ (उद्यानबाटी) कि स्थापना।





श्री रामकृष्ण ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में इस मठ कि स्थापना अपने शिष्यों के रहने के लिए किया था। जिसे उन्होनें 1886 में अपने महासमाधि के द्वारा पावन किया था। तब से यह मठ एक तीर्थ बन गया है। वर्ष 1946 ईं में इसे रामकृष्ण मठ कि एक शाखा में बदल दिया गया था। जीवन के अंतिम दिनों में 01 जनवरी 1886 ई को कल्पतरू वृक्ष के निचे उन्होनें अपने शिष्यों कि सारी मनोकामना पुरा किया था। तब से लेकर आज तक यहां इस मठ में 1 जनवरी को कल्पतरू महोत्सव के रूप में मनाया जाता है। हरेक साल 01 जनवरी को रात 12 बजे से ही लोग कतार में दर्शन के लिए खड़े हो जाते है, यह कतार पुरा दिन चलता है, लोग ठाकुर के दर्शन करते है, और कल्पतरू वृक्ष के नीचे अपने मनोकामना को ठाकुर को याद करते हुए मांगते है, लोगो का कहना है, कि यहां उनकी मनोकामना कि पुर्ति होती है। मुझे यह सब अनुभव तो नहीं है, लेकिन इतना जरूर पता है, कि यहां आत्म शांति कि प्राप्ति जरूर होती है। वास्तविकता का अनुभव जरूर होता है। 


रामकृष्ण मठ(उद्यानबाटी) खुलने का समय।

मठ के खुलने और बंद होने का समय नियत है, इस समय में ही आप मठ में दर्शन या भ्रमण कर सकते है। समय तालिका इस प्रकार से है-

रामकृष्ण मठ ( काशीपुर) पहुचने का मार्ग।


दोस्तों, मैं यहा मठ और उससे जुडें बहुत सारी बातों पर चर्चां करेंगे, लेकिन मैं यहां पर सबसे पहले पहुंचने कि मार्गों पर जरूर बात करना चाहुंगा, क्युंकि इसकी चर्चा बहुत जरूरी है, लोगो को कोई कठिनाई का सामना ना करना पड़े, इसके लिए मैं रेलवे स्टेशन, एयरपोर्ट आदि से आने के सभी उचित रास्तों कि चर्चा जरूर करूंगा, मेंरे से बने रहिए।
 

हावड़ा रेलवे स्टेशन से।

हावड़ा रेलवे स्टेशन पर उतर कर आप दो मार्गों से यहां पहुंच सकते है, बिल्कुल ही कम खर्च पर। एक मार्ग है, हुगली नदीं के द्वारा जेटी अथवा फेरी के माध्यम से, और दुसरा है, बस के द्वारा। अब यह आप पर निर्भर करता है, कि आप किस मार्ग पर जाना पसंद करते है, दोनों ही कम खर्च पर जा सकते है। मैने इसके संबध में काफी चर्चा किया है, स्थानिय लोगो से फिर मैं आपको इस बात से अवगत करवा रहा हूं। 

जेटी अथवा फेरी के द्वारा।

हावड़ा स्टेशन से बाहर निकलने पर या अंदर से ही फेरी प्लेस में जाने का रास्ता है, स्टेशन के अंदर में अंडरग्राउंड रास्ता भी है। वहां से आप फेरी प्लेस में जा सकते है, वहां जाकर आपकों टिकट काउंटर से बागबाजार का टिकट लेना है, जिसका मू्ल्य अभी 07 रूपया है। उसके बाद आप बागबाजार जाने वाले फेरी पर सवार हो जाइए, करीब आधा घण्टा के बाद सबसे आखिरी स्टॉप बागबाजार होता है, वहां उतरना है, और मेन रोड पर जाना है, वहीं पर बागबाजार रेलवे स्टेशन का फाटक भी है, उसको पार करने के बाद आपको रोड मिलेगा। वहां से सिधे उद्यानबाटी के लिए ऑटो मिल जाएगा। रोड पर आने के बाद आप किसी ऑटो वाले से पुछ सकते है, कि कौन सा ऑटो काशीपुर जाएगा, बस उसमें सवार हो जाइए, और ऑटो वाले को बोलिए कि वो उद्यानबाटी के मेन गेट पर रोक देगा। वह आपकों वहीं उतार देगा, सामने मठ का गेट दिखेगा। ऑटो का भाड़ा 20 रूपया है। वापस भी आप ठीक इसी रूट से जा सकते है। 

बस के द्वारा।

हावड़ा रेलवे स्टेशन पर उतरने के बाद आप प्लेटफॉर्म नं 1 से होते हुए आपको टिकट काउंटर के बगल से बाहर आना है, आगे बढंना है, वहां आपकों ढेर सारी बस दिखेगी किसी से भी पुछ लेना है, कि बैरकपुर कि बस कहां से मिलेगी यहां फिर आप काशीपुर चिरियां मोंड़ के छोटी बस के बारें मे भी पुछ सकते है। लेकिन वह हमेशा नहीं मिलती है।  इसलिए आप बैरकपुर वाले बस में चढ जाइए और कंडक्टर के बोल दिजीए कि वह आपको काशीपुर चिरियां मोड़ पर उतार दे, करीब आधा घण्टा लगता है, उसके बाद आप काशीपुर चिरियां मोड़ पर उतर जाएंगे, बस का भाड़ा करीब 15 रूपया है। चिरियां मोड़ से आपको काशीपुर के लिए ऑटो मिलेगा, ऑटो वाले को बोलिए कि आपको उद्यानबाटी उतरना है, वह आपको उतार देगा। ऑटो का भाड़ा 10 रूपया है। 

एयरपोर्ट से 

एयर पोर्ट से चिरियां मोड़ कि डायरेक्ट बस मिल जाती है, उसको लेकर आप चिरियां मोडं पहुंच जाइए इसके बाद आप सिधे काशीपुर वाली ऑटो को ले सकते है। 

मेट्रो के द्वारा।

सबसे नजदीकी मेट्रों स्टेशन दमदम मेट्रों स्टेशन है, यहां तक पहुंचिए, उसके बाद मेट्रों स्टेशन से बाहर निकलने पर चिरियां मोडं के लिए ऑटो मिलेगा, वह आपकों चिरिया मोड़ पर उतार देगा, और वहां रोड क्रोस करने बाद आपको काशीपुर के लिए ऑटो मिलेगा, उसमें चढ़ जाइए, फिर ऑटो वाले को बोलिए कि वह आपको उद्यानबाटी उतार देगा, उसके बाद आप मठ पहुंच जाएंगे।

मठ कि विशेषता तथा उससे जुडें रोचक कहानियां।


श्री रामकृष्ण ने अपने जीवन के अंतिम दिनों में अपने परम समाधि से पहले इसी मठ में गुजारा है, उस समय कुछ ऐसी घटनाएं हुई है, जो उनके ठाकुरता का प्रमाण है, जिसमें से कुछ एक की चर्चा मैं अपनी जानकारीयों कि हिसाब से पुरी विश्वसनीयता से करूंगा, तथा उससे जुड़े जगहों तथा उसके तथ्यों के आपलोगों के सामने रखने का प्रयास करूंगा। जो इस प्रकार से है -


कल्पतरू महोत्सव

जीवन के अंतिम दिनों में 01 जनवरी 1886 ई को कल्पतरू वृक्ष के निचे उन्होनें अपने शिष्यों के सारी मनोकामना पुरा किया था। तब से लेकर आज तक यहां इस मठ में 1 जनवरी को कल्पतरू महोत्सव के रूप में मनाया जाता है। हरेक साल 01 जनवरी को रात 12 बजे से ही लोग कतार में दर्शन के लिए खड़े हो जाते है, यह कतार पुरा दिन चलता है, लोग ठाकुर के दर्शन करते है, और कल्पतरू वृक्ष के नीचे अपने मनोकामना को ठाकुर को याद करते हुए मांगते है, लोगो का कहना है, कि यहां उनकी मनोकामना कि पुर्ति होती है।

कल्पतरू वृक्ष


भयानक सांप कि कहानी।

श्री रामकृष्ण जी काफी बिमार थे, इतना ज्यादा कि चलने फिरने में भी असमर्थ थें। इस मठ में एक ताड़ का पेड़ था, जिसके निचे एक भयानक सांप रहता था। ठाकुरजी इस बात को जानते थे, इसलिए अपने शिष्यों को उधर जाने से मना करते थे। ठाकुर के शिष्यों में से एक शिष्य थोड़ा शरारती था, वह ताड़ का फल खाने के लिए ताड़ के पास चला गया। गुरूजी अचानक उठे और ताड़ के तरफ भागे, और फिर उन्होनें सांप को भगाया। यह सब आश्चर्यजनक था, क्युंकि गुरूजी अपने कक्ष में पड़े थे, इतना कमजोर हो गए थे, कि चलना फिरना भी मुश्किल था, फिर भी वहां तक दौड़े चले गए, जबकि उनको किसी ने बताया भी नहीं था। आज भी उस ताड़ के पेड़ को इस मठ में याद स्वरूप रखा गया है। 



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