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DATE - 06 SEP 2022
दोस्तों, गुगल ने भी क्या मस्त चीज बनायी है, टाइप नहीं करना है, तो क्या हुआ बोलकर भी यह लिख देता है, कहते है, आवश्यकता अविष्कार कि जननी है, यह तो बिल्कुल ही सत्य है, आज से पहले कभी मैने ऐसे सुविधाओ के बारे में खोजने कि कोशिश नहीं की, पर जब आज जरुरत पड़ी तो मिल गया। चाह में ही राह है, सिर्फ चाहने से भी नहीं होगा, हमें राह खोजनी पड़ती है। एक मेरी बहुत करीबी लड़की दोस्त है, जो किसी घटना के घटने का वजह खुद को मानती है, वो इतना तेज बोलती है, कि कभी भी मै उसे समझा ही नहीं पाता, हमेशा खुद को हरेक चीज का वजह मानती है, और दुखी होकर खुद को कोसने लगती है, यह वक्तव्य जो अभी मै देने वाला हूं, यह उन सभी के लिए है, जो अपने आपको पन्नौती अथवा हरेक बुरे घटनाओं का वजह समझते है। आज मेरा प्रयास यह रहेगा कि मेरी करीबी को यह समझ आए कि इस संसार में जो कुछ भी होता है, उस हरेक कार्य मे भगवान कि सहमति होती है, बिना उनके एक तिनका भी नहीं हिल सकता है। भगवान श्री कृष्ण ने गीता में स्वंय कहा है, कि इस संसार में मौजुद कण-कण में मै हूं। बिना मेरी मरजी के एक तिनका भी नहीं हिल सकता है।
एक कहानी बताता हूं, ध्यान से सुनो। महाभारत के युद्ध के बाद सभी पांडव एवं श्री कृष्ण साथ में बैठ कर बात कर रहे थे। बातों-बातों में सब अर्जुन कि तारिफ करने लगे, अर्जुन के बातों से अहंकार कि बदबु आने लगी। यह देख श्री कृष्ण मुस्कुरा रहे थे। बरबरीक नाम का योद्धा जो श्री कृष्ण के आशिर्वाद से पर्वत पर आसन लगाये सब देख सुन रहा था। उसने जब अर्जुन के अहंकार भरे शब्द सुने तो वह जोर-जोर से हँसने लगा। जब कुटीर में बैठे पांडवों को उसकी हँसी सुनाई पड़ी, तो कुटीर से बाहर निकलकर देखने लगे कि कौन हँस रहा है? उन्होने देखा एक बिना धड़ का व्यक्ति जोर-जोर हँस रहा है, उन्होने परिचय पूछा तो उसने अपना परिचय दिया कि वो बरबरीक है, और श्री कृष्ण कि कृपा से उसने समुचे युद्ध को देखा है। यह सुनकर अर्जुन को रहा नहीं जाता है, और उतावले होकर पूछ ही डालते है, कि - हे बरबरीक आपने तो पूरे युद्ध को देखा, एक सवाल का जवाब दीजिए, कि इस युद्ध में सबसे अधिक वीरता के साथ कौन लड़ा? यह सुनते ही बरबरीक जोर-जोर फिर से हँसने लगे, यह देखकर सभी पांडव गुस्सा होने लगते है, तभी अर्जुन ने कहां कि - हे बरबरीक आप हमारा अपमान कर रहे है। बरबरीक ने बड़े ही विनम्रता के साथ जवाब दिया, उन्होने कहा कि पुरे युद्ध मे मैने यही देखा कि कोई नहीं लड़ रहा है, मुझे हर जगह श्री कृष्ण का सुदर्शन विनाश करते और सबका संहार करते दिख रहा था। श्री कृष्ण मुस्कुराते है, और कहते है - हे अर्जुन इस संसार में मौजुद हरेक प्राणी का भला अथवा बुरा, सुख - दुख सब कुछ मै ही निर्धारित करता है, और यह उसके कर्मों का फल होता है। इस संसार मे मेरी मरजी के बिना एक तिनका भी नहीं हिल सकता है। तुम सिर्फ माध्यम हो पर सब कुछ करने वाला मैं ही हूं। इस संसार में होने वाला हरेक कार्य मेरे द्वारा ही होता है, पर उसका माध्यम कोई और होता है।
एक उदाहरण देता हूं, मान लिजिए एक मानव कार से जा रहा है, और एक ट्रक वाले ने उसे ठोक दिया और कार वाला व्यक्ति मर जाता है, मानवीय रुप से देखा जाए, तो यह कार वाले कि गलती से मरा, पर यह होनी था, विधाता ने उसकी मृत्यू इसी प्रकार लिखी थी। इसमें किसी का कोई दोष नहीं यह विधी का विधान था।
मेरे साथ जो भी हुआ, यह विधी का विधान था, पर फिर भी तुम्हे यह लगता है, कि इन सब हलातों के पीछे तुम हो, तो आज मै तुम्हें इन सारी गलतियों के लिए माफ करता हूं। भगवान तुमको हमेशा खुश रखें, मेरी हमेशा यहीं प्रार्थना रहेगी। अपना ख्याल रखों और खुश रहो।
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