परिस्थिति और सामना : कोरोना महामारी में अनाथ हुए बच्चो का दर्द।

श्री अक्षय भट्ट
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P - 105

Date - 6th Aug 2021


परिस्थिति और सामना


ग्रीष्मकाल का समय था, सुबह हो रही थी, सूरज की किरणे आँगन मे मौजूद नीम के पेड़ के पतों को चीरते हुए जमीन को सुनहले रंग से प्रकाशित कर रही थी, चिड़ियों की चहचहाहट चारों ओर मची हुई थी, परिवार के सभी लोग अभी बीहड़ निंद्रा मे सो रहे थे, पर आशा की आँख खुल गई, वो उठी और आँख मिचते हुए चापाकल की तरफ बढ़ी। नींद तो काफी लग रही थी, क्यूंकी कल आशा को काम करते करते देर रात हो गई थी, सुबह ढेर सारा काम पड़ा था, इसलिए वो मुह पर पानी मारने चापाकल के पास गई। गर्मी की वजह से चापाकल का पानी सुख गया था, कुछ देर तक उसने चापाकल का हैन्डल चलाया पर पानी कहा आने वाला ? उदास होकर वो चापाकल के पास बने ओटे पर बैठ गई। बैठ कर वो सोच ही रही थी, तब तक लाली के पिता जग गए, उन्होंने आशा की तरफ देखा और बोले, “ वहाँ बैठ कर क्या कर रही है? आशा उदास होकर बोली, “चापाकल का पानी सुख गया है” लाली के पिता बनवारी ने चापाकल की तरफ देखते हुए पड़ोस में गए और पानी लेकर आए, फिर चापाकल मे पानी डालकर चालू किया और गुस्से मे आशा को डांटते हुए बोले, “ कितनी बार तुम्हे कहा है, सोने से पहले बाल्टी मे पानी भर दिया करो, जब इस महीने का तनख्वाह मिलेगा, तो बनवा दूंगा।“ आशा ने हल्की से मुस्कुराहत देते हुए पूरी शालीनता के साथ कहा, “जी ठीक है।“ यह सुन कर बनवारी घर से बाहर चले गए। आशा पूरे आंगन को साफ करते हुए, लाली को आवाज देती रही, की उठ जा सुबह हो गई है। आंगन मे झाड़ू देना, मिट्टी के चूल्हे को लिपना, बर्तन धोना और पति और बेटी के लिए सुबह का नाश्ता तैयार करना, आशा की दिनचर्या मे था। चार साल की लाली आँख मिचते हुए उठी , और अपनी माँ की तरफ देखते हुए और सोने के लिए इशारा किया, आशा ने गुस्से से उसकी तरफ देखा, लाली मन को मारते हुए , उठी और बाल्टी मे भरे हुए पानी से मुह धो कर खड़ी हो गई। आशा दुलारते हुए, उसे स्कूल के लिए तैयार किया, फिर जल्दी जल्दी नाश्ता बनाने लगी नाश्ता बनते ही टिफ़िन मे डाला, और लाली के लिए दो रोटी और थोड़ा सा आलू की भुजिया परोश दिया, लाली अभी खा ही रही थी, की तब तक बनवारी आ गया, झटपट आशा बनवारी के पास लोटे मे पानी लेकर गई, और हाथ धुलाते हुए बोली, “आप भी नाश्ता कर लीजिए मै आपके लिए भी टिफिन बना देती हूँ, जाते हुए लाली को स्कूल छोड़ दिजीएगा, क्यूंकी आज मुझे बहुत काम है ।“ बनवारी ने कुछ भी जवाब नहीं दिया और खाने के लिए बैठ गया। तब तक लाली तैयार बैठी थी, नाश्ता करने के बाद बनवारी ने लाली को आवाज लगाई और उसे साइकिल पर बिठकर ले गया। आशा की शादी पाँच साल पहले हुई थी, यह स्नातक तक पढ़ी हुई बहुत ही शालीन, सुंदर, और सुशील लड़की थी, इसका सपना एक डॉक्टर बनने का था, पर अचानक पिता की मौत से किस्मत ने साथ ही छोड़ दिया, अकेली माँ ने आशा को मजबूर करके उसकी शादी बनवारी के साथ कर दी। आशा ने अपने सपनों को कुचल कर आज भी अपने पति का साथ दे रही थी। बनवारी भी एक कर्मठ और ईमानदार लड़का था। पिता के द्वारा लिए गए कर्जों की वजह से, बेचारे का हाल बुरा था, इन परिस्थितियों मे वो आशा के सपनों के बारे मे भला कैसे सोच पाता। आशा अपने उदासी को अपने दिल मे छिपा कर पति को साहस देती रहती थी। आशा का मानना था, की परिस्थितियों से भागने से अच्छा है, उसका डट कर सामना करना। आशा को यह पूरा विश्वास था, की उसकी बेटी लाली उसके सपने को पूरा करेगी। जिसके लिए वो दिन रात मेहनत करती थी। 


            बनवारी, लाली को स्कूल छोड़कर काम पर गया, वहाँ पहुंचते- पहुंचते उसे देर हो गई थी, मैनेजर साहब ने गुस्से मे उसे बहुत सुनाया, पर उसने थोड़ा सा भी जवाब नहीं दिया, अपने परिवार के लिए उसे यह नौकारी बहुत जरूरी थी। बनवारी को पाँच हजार रुपये तनख्वाह के रूप मे मिलता था, जिसमे तीन हजार, का भुगतान वो साहूकार को कर देता था, बचे हुए दो हजार रुपये, आशा के हाथों पर नजर झुकाते हुए रख देता था, आशा जैसे तैसे करके उसी मे परिवार को पालने की कोशिश मे लगी रहती थी। बनवारी और आशा को साथ बैठ मुस्कुराते हुए, शायद ही किसी ने देखा हो, क्यूंकी ये दोनों अधिकतर इशारों मे ही बात कर लिया करते थे। लाली पढ़ने मे अच्छी हो गई थी, क्यूंकी आशा उसे बहुत अच्छे से पढ़ाया करती थी, कुछ ही दिनों बाद वो अपनी कक्षा मे प्रथम आने लगी, यह देख कर बनवारी और आशा बहुत खुश हुए। लाली को प्रथम आते देख बाकी बच्चों ने लाली से पुछा की उसे कौन पढ़ाता है, लाली ने इतराते हुए अपनी मा के बारे मे बताया, और खेलने मे लग गई, सभी बच्चों ने अपने घर पर बताया और उसमे से कुछ अभिभावक मिलने का विचार कीये। एक दिन सुबह सुबह कुछ लोग बनवारी के घर पर आ गए, आशा लोगों को देख घबरा सी गई, और घूँघट डालते हुए, बनवारी को बताया, बनवारी उठकर बाहर आए, और सभी को बिठा कर पानी पात के लिए पूछा, बहुत ही शिष्टता के साथ उन लोगों ने जवाब दिया, और कहा धन्यवाद पर हम पानी पी चुके है, और पूरी बात बनवारी को बताई जिस प्रयोजन से वो घर आए थे, शुरू मे बनवारी हिचकिचाया पर बाद मे मान गया। आशा बगल के घर की खिड़की से सब कुछ देख रही थी। सभी लोगों के वापस जाने के बाद बनवारी घर मे आया और खुश होते हुए आशा को गले लगा लिया, आँखों मे आसुँ लिए बनवारी इस भाव मे डूब कर रोने लगा कि वो आशा की सपनों को पूरा ना कर पाया। आशा पहली बार अपने पति को मजबूर देख, उन्हे हिम्मत देते हुए कहने लगी की अगर मै डॉक्टर बन जाती तो आपकी पत्नी कैसे बनती, यह सुख और प्यार जो आपसे मुझे मिल रहा है, ये मुझे कभी नहीं मिल पाता। जैसे तैसे करके आशा ने बनवारी के चेहरे पर हसी ला ही दी। भगवान जो करता है, अच्छे के लिए ही करता है, हम बिना उस परिस्थिति का सामना किए बगैर भगवान को कोसना शुरू कर देते है, पर जरा सा यह नहीं सोचते की हो सकता, इसके पीछे भी कृष्णा की कोई लीला हो। आशा समझदार थी, वो जानती थी कभी न कभी उसके दिन भी बदलेंगे। अगले दिन से बच्चे पढ़ने आने लगे, आशा प्रतिदिन अपना काम जल्दी जल्दी निपटा कर बच्चों को पढ़ाने लगी। सब कुछ सही चल रहा था, गरीबी के बादल धीरे धीरे करके हट रहे थे, समाज मे थोड़ी बहुत मात्रा उपलब्धि मिलनी शुरू भी हो गई थी। बनवारी मन ही मन ही मन खुश था, की अब बिटिया को अच्छे से पढाएगा, सारी उधारी बकाया सब चुका देगा। 


संध्या का समय था, पक्षियाँ उड़ते हुए, लालिमा से परिपूर्ण आकाश को पार करते हुए अपने घोंसले मे लौट रही थी, लाली घर से बाहर द्वार पर खेल रही थी, बनवारी घर के कोने मे रखे खाट पर बैठ कर भुंजा फांक रहा था, आशा हाथ मे झाड़ू लिए आँगन साफ कर रही थी, अचानक उसका ध्यान बनवारी पर पडा, बानवारी उसे एक टक देख रहा था। जब आशा की नजर बनवारी पर पड़ी, तो शर्मा गई, और हसने लगी, बनवारी भी मुस्कुरा रहा था। ये सिलसिला चल ही रहा था की अचानक लाली की जोर से आवाज आई, “मा देखो कौन आया है? आशा द्वार के तरफ यह कहते हुए भागी की, “ कौन है ?? सामने आशा का छोटा भाई खड़ा था, गोद मे लाली बैठकर मुस्कुरा रही थी, जैसे उसके खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं। लाली को नीचे रखते हुए, आशा का भाई ललित दीदी के पाव छूए, आशीर्वाद ले ही रहा था, की तब तक बनवारी बाहर आ गया, तब तक ललित पाहूना कहते हुए, पाव छूने आगे बढ़ा और आशीर्वाद ली। सब लोग हाल चाल पूछने लगे, तब तक आशा उठी और नाश्ते पानी का जुगाड़ करने मे लग गई। ललित और बनवारी आपस मे बात करने मे लग गए। कुछ देर बाद लाली वापस खेलने चली गई। ललित की शादी आशा की शादी के दो साल बाद हो गई थी, शादी के बाद वो मुंबई कमाने चल गया था, वहाँ पर वह किसी होटल मे काम करता था, महीने के दस हजार मिल जाते थे, पूरा परिवार सिर्फ ललित के कमाई से ही चल रही थी। बातों बातों मे ललित ने बताया की कोई महामारी आ गई , सब लोग घर भाग रहे थे, इस लिए हम भी भाग आए, रास्ते मे जाते हुए, सोचा की दीदी से मिले चार साल हो गए है, दीदी का घर भी रास्ते मे ही पड़ता है, तो पहले दीदी से मिल लूँ। बनवारी ने चौकते हुए कहा की महामारी ? ये क्या होता है ? फिर ललित ने पूरी बात बताना शुरू कर दिया, तब तक आशा ने नाश्ता तैयार कर दिया था, उसने ललित को आवाज लगाई की भाई आजा पहले कुछ खा ले फिर अच्छे से बात करना, ललित ने टालते हुए जवाब दिया दीदी पहले स्नान कर लेता हूँ , थोड़ी देर रुक जाओ। यह कहते हुए, ललित ने महामारी के बारे मे बताना शुरू किया, महामारी, एक ऐसी बीमारी होती है, जो तेजी से एक आदमी से दूसरे आदमी मे फैलना शुरू कर देती है, और अभी इसका कोई इलाज भी नहीं है। इस बीमारी को सब लोग कोरोना कह रहे है, सब लोग बोल रहे थे, की ये बीमारी चीन से आई है। बनवारी को उसकी बात अच्छे से समझ नहीं आ रही थी, उसने ललित को बोला अच्छा चलो पहले नहा लो, फिर अच्छे से बात किया जाएगा। बात मानकर ललित नहाने चला गया, फिर बनवारी भी बिस्तर से उठते हुए आशा को आवाज लगाई, मै भी थोड़ा खेतों से होकर आता हूँ। ललित को जरा सी भी इस बात का अंदाजा नहीं था, वो अपनी दीदी को किस मुशीबत मे डाल रहा है। वो दो दिन अच्छे से रुका और दीदी से ढेर सारी बातें की। अगले दिन दोपहर मे वो अपने घर निकलने वाला था, तब तक प्रधानमंत्री ने सम्पूर्ण लॉक डाउन की घोषणा कर दी। सारे परिवहन के साधन बंद हो गए , अब ललित चाह कर भी आपने घर नहीं जा सकता था । वह मजबूरन दीदी के पास रहने लगा। सब लोग दिन भर घर मे रहने लगे , आशा के पास आने वाले लड़कों ने भी आना छोड़ दिया, लाली की स्कूल भी बंद हो गई, सब कुछ ठप सा पड़ गया, जैसे पता नही क्या हो गया हो। सड़कों पर एक बहुत ही गंभीर सन्नाटा सा छा गया था, सब कुछ अजीब सा लग रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे की चारों तरफ मातम छाया हो। किसी के घर से भूख से बिलखते बच्चों की रोने की आवाज आती, तो किसी घर से किसी के मरने के उपरांत चीखें सुनाई पड़ती, सब कुछ बंद होने की वजह से आशा की सहेली मालिनी प्रसव पीड़ा के कारण मर गई, आशा को जैसी ही मालूम चला, वो भाव बहिबहोर हो चुकी थी। पति और बच्ची लाली को एहसास ना हो, और उनमें हिम्मत बना रहे, इस लिए वो रो भी नहीं पा रही थी। खाने के लिए राशन भी अब समाप्त होने ही वाले थे, आशा किसी को कुछ न बोलकर दिन मे सिर्फ एक बार ही खाती रही। बहुत ही बुरा मंजर था, अगले दिन कोई बाहर मे राशन बाँट रहा था , आशा दौड़ी, उसने देखा वो लोग राशन तो दे रहे थे, पर बदले मे उनके साथ फोटो खिचवाना था, लोग दूसरों की मजबूरी मे अपनी अवसर ढूंढ रहे थे और वो मिल ही चुका था, आशा का स्वाभिमान तो अडिग था, पर एक मा और पत्नी के रूप मे वो हार गई, उसने राशन लिया और फोटो भी खिचवाई, यह राशन मुखिया जी के तरफ से सबको बटवाया जा रहा था। आशा चुपके से घर मे दाखिल हुई और राशन की पोटली छुपाते हुए रसोई घर मे चली गई। रसोई घर से निकलते हुए, उसने किसी के कराहने की आवाज सुनाई पड़ी, यह आवाज एक दस्तक थी, एक ऐसी बुरी बीमारी का जिसका अंदाजा, उसे बिल्कुल नहीं था। आशा कमरे की तरफ बढ़ी , उसने देखा उसका भाई ललित कराह रहा है, वो घबरा गई, उसने ललित को झकझोर के पुछा, भैया तुम ठीक हो न ? ललित जग गया और बोला, तू फिकर मत कर, कुछ नहीं हुआ बस थोड़ा देह मे दर्द है आराम करूंगा ठीक हो जाऊंगा, आशा ने हल्की की मुस्कुराहट चेहरे लाते हुए, लाली के आस चली गई। दो तीन दिनों के बाद ललित की हालत गंभीर होती गई, ललित पढ़ लिखा था, उसे इस बात का एहसास हो गया था की उसे इस महामारी ने जकड़ लिया है, उसने पुलिस स्टेशन मे फोन किया, और पूरी बात बताई। दो दिन बित जाने के बाद पुलिस घर पर एम्बुलेंस के साथ आती है, यह देख कर आशा बाहर देखती है, की क्या हो गया, उसने देखा की पुलिस उसी के घर आ रही है, वो दौड़ी और बनवारी को बुलाया बनवारी गमछा से मुह ढकते हुए बाहर गया और दरोगा जी से पुछा दरोगा जी ने दूर रहने को कहा और ललित के बारे मे बताया। यह सुनकर बनवारी स्तब्ध हो जाता है। फिर पुलिस ने ललित को अस्पताल भेजवा दिया, और पूरे परिवार को संगरोध कर दिया । तीन चार दिनों के बाद ललित के मरने की बात सुनाई पड़ी, आशा रोती रही, पर उसे अपनी भाई के अंतिम दर्शन भी नहीं हुए, शव को भी उनके हवाले नहीं किया गया। बहुत ही दुखद स्थिति थी। दो चार दिन हो गए थे, आशा अभी तक उस सदमे से उभरी नहीं थी, तब तक बनवारी की तबीयत खराब होने लगी, टेस्ट के बाद पता चला, बनवारी और आशा दोनों ही इस महामांरी के चपेट मे थे, सिर्फ लाली स्वस्थ थी। लाली को उसकी मा से अलग कर दिया गया, वो बिल्कुल ही अकेली पड़ गई उसे कोई अपने पास भी रखने को तैयार नहीं था, परिस्थिति ही ऐसी थी। डॉक्टर साहब ने दया करके लाली को दो दिन हॉस्पिटल मे रहने दिया उस के बाद लाली की नानी आकर उसे अपने साथ लेकर चली गई। कुछ दिन बाद इलाज के अभाव मे बनवारी और आशा दोनों की मौत हो जाती है। अस्पतालों में दवाई तक नहीं थी, बनवारी इतना धनी भी नहीं था की वो अपना इलाज निजी अस्पतालों में करवाएं। कितनी दर्दनाक है, की इस बाल अवस्था मे मां बाप का साया बच्चे पर से उठ जाए। उसकी नानी ये बात उसे कैसे बताती ? लाली को आज भी यहीं पता है, की उसके मा बाप का इलाज चल रहा है। बेचारी को अंतिम समय भी मा बाप का दर्शन नहीं हुआ। क्यूंकि अस्पताल से उनकी शव भी ना मिल सकी। सारे सपने समेटे आशा इस दुनिया से चली गई। 


यह कहानी तो एक छोटे से गांव की लाली की है, पता नही ऐसे कितनी लाली होंगी जिन्हें इस महामारी ने अनाथ बना दिया। भारत सरकार ने इसके संबंध में कदम उठाए है, पर यह मदद जमीनी स्तर तक पहुंच पाए, तभी अच्छा है, नहीं तो पता नही कितनी योजनाएं आज भी गरीबों का कुछ भला नहीं कर पाई है। कहते है, उम्मीद पर ही दुनिया टिकी है, इसकी सकारात्मक भाव रखते हुए, यह उम्मीद करते है, की लाली के लिए जरूर ही कुछ अच्छा होगा। कुदरत इतना भी जालिम नहीं, की अनाथ भी कर दे, और आश्रय भी ना दे।


लेखक की कलम से:-


इस कहानी के सभी पात्र एवम घटनाएं काल्पनिक है, इसमें लेखक द्वारा कोरोना महामारी में अनाथ हुए, बच्चो पर सरकार की नजर डलवाने का प्रयास किया जा रहा है। अगर एक भी बच्चे का भला होता है, तो लेखक को इस से खुशी मिलती है। जय हिंदुस्तान।।।





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